रतलाम। एक साथ मिलना, बैठना और एक दूसरे की भावनाओं को सुनना और अपने मन की बातों को सुनाना यह आज के समय में बहुत आवश्यक है । इस आयोजन के माध्यम से शहर को यह अवसर मिल रहा है जो बहुत सुखद है । उक्त विचार शहर में रचनात्मक वातावरण बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत ‘सुनें सुनाएं ‘ आयोजन के 21 वें सोपान में उभर कर सामने आए। जी.डी. अंकलेसरिया रोटरी हॉल पर आयोजित इस सोपान में रचना प्रेमियों ने अपनी प्रिय रचनाओं का पाठ किया।
पहले सोपान से अब तक नियमित रूप से उपस्थित हो रहे हैं साथी आई.एल.पुरोहित ने डॉ. विष्णु सक्सेना का गीत ‘ थाल पूजा का ले कर चले आइए’ सुनाया। विजय सिंह रघुवंशी द्वारा प्रो. अज़हर हाशमी की रचना ‘ मुझको राम वाला हिन्दुस्तान चाहिए ‘ का पाठ किया गया। हरेन्द्र कोठारी ने असर अहमदाबादी की ग़ज़ल ‘मेरी मस्ती पे ज़माने के हैं पहरे कितने’ का पाठ,श्रीमती इन्दु सिन्हा ने रघुवीर सहाय की रचना “रामदास” तथा इस आयोजन के लिए हर बार बाजना से आने वाले दिनेश जोशी ने उपग्रह के स्तम्भ में प्रकाशित रचना ‘सोच बड़ी रखिए ‘ का पाठ किया ।
हिन्दी की विदूषी डॉ. पूर्णिमा शर्मा द्वारा दुष्यंत कुमार की रचना ‘ कहां तो तय था चराग़ां हरेक घर के लिए ‘ का पाठ किया गया। पीरुलाल डोडियार ने पंडित मुस्तफ़ा आरिफ़ की कविता ‘राम मेरी विरासत’ का पाठ किया वहीं रश्मि पंडित द्वारा अग्निशेखर की रचना ‘छत पर चांद’ का पाठ किया गया। सरवन से आए दिनेश बारोठ ने बहादुर शाह ज़फ़र की ग़ज़ल ‘लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में ‘ का पाठ तथा कीर्ति शर्मा द्वारा शील जी का गीत ‘ बढ़ रही है आग धुंआधार ,देश के जवान इसे रोक दो ‘ का पाठ किया गया।
इनकी उपस्थिति रही
आयोजन को अपनी गरिमामयी उपस्थित से सुधिजनों सार्थक किया। इनमें प्रो.रतन चौहान, गुस्ताद अंकलेसरिया, डॉ. अभय पाठक, सिद्दीक़ रतलामी, इंदु सिन्हा, संजय परसाई, अशोक कुमार शर्मा, श्रीराम दिवे, विनोद झालानी, श्याम सुंदर भाटी , राधेश्याम शर्मा, ललित चौरडिया , जीएस खींची , रीता दीक्षित, आशा श्रीवास्तव , अशोक पटेल, ओम प्रकाश मिश्रा, डॉ गोविंद प्रसाद डबकरा , अनीस ख़ान , फिरोज़ अख़्तर , जितेंद्र सिंह पथिक , नरेंद्र सिंह डोडिया , विभा राठौर, बृजेंद्र नंदन मेहता , नरेंद्र त्रिवेदी, अनीता दासानी , सुरेंद्र छाजेड़ , मणिलाल पोरवाल , रमेश बनवार , अमृतलाल प्रजापत , जयेश शर्मा, शिवराज जोशी , विष्णु बैरागी, महावीर वर्मा एवं आशीष दशोत्तर उपस्थित थे।