रतलाम / चुनाव के पहले शहर में लगे बड़े हार्डिंग जनता ने देखे होंगे , जिस पर लिखा था ” कांग्रेस आई, खुशहाली लाई” प्रदेश की सत्ता में काबिज होने के आतुर कांग्रेस के आत्मविश्वास भरे शब्द ऐसे लगे जैसे की बस शपथ ग्रहण ही करना हो, लेकिन इन आत्मविश्वास भरे शब्दों की चुनावी नतीजों ने आत्महत्या ही कर दी है। ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस रास्ता भटक गई हो । इतने बुरे नतीजों से कांग्रेस को गुजरना पड़ेगा शायद ये कांग्रेस ने भी नही सोचा होगा । भ्रष्टाचार से लेकर तमाम व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े कर भाजपा को घेर रही कांग्रेस ने मतदान के बाद कहा था कि मतदाता साइलेंट है मतगणना में सब सामने आ जाएगा । ईवीएम के अंदर कैद जब मतदाताओं की चुप्पी खुली तो कांग्रेस को ही साइलेंट मोड पर डाल दिया। टिकट वितरण से ही कांग्रेस में ” पुत के पांव पालने में नजर आ जाते है” जैसा समझ आने लगा था। भाजपा की हुई बंपर जीत ने बताया दिया है कि मतदाताओं ने कांग्रेस को ही नकार दिया है उसके क्या कारण हैं इसका तो कांग्रेस को मंथन करना होगा। लेकिन दिखावटी हिंदू , राम को काल्पनिक बताना, सनातन धर्म पर सवालिया निशान लगाना , जैसे अनेकों उदाहरण हैं जिसने कांग्रेस को सियासत पर आने से पहले ही उल्टे पांव लौटा दिया। कांग्रेस के पास नेताओ से लेकर कार्यकर्ताओं तक का टोटा , रणनीति तैयार करने में पूरी तरह से विफल और नकारा साबित हुआ है। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार ने अपने ही कार्यकर्ताओ को विश्वास में नहीं लेकर अपने वोट बैक में सेंध लगाई।

  • गणितज्ञ का गणित फेल
    रतलाम शहर सहित जिले की पांचों सीटों पर कांग्रेस के टिकट कमजोर थे । सिर्फ परिवर्तन का नारा देकर चुनाव में सत्ता की कुर्सी के लिए लार टपका रही कांग्रेस के नारे में ही ऐसा परिवर्तन आया की कांग्रेस को ही जिला बदर कर कांग्रेस मुक्त जिला बना दिया। शहर से उतरे उम्मीदवार का नाम सामने आते ही हार तय मानी जाने लगी थी। प्रदेश कांग्रेस की आरोप समिति के लिए मुखिया बन कर सिर्फ काल्पनिक आरोप गढ़ कर चुनावी माहौल तैयार करने वाले ये उम्मीदवार गणितज्ञ माने जाते है जिनकी गणित कांग्रेस क्या अपने ही चुनाव में फेल हो गई। इन उम्मीदवार का राजनेतिक कद जो निर्दलीय में बना था वह कांग्रेस में बौना साबित हुआ। चुनावी सभाओं में सिर्फ आरोपों की बैसाखी पर पॉलिटिकल ड्रामा कर जनमत तैयार करने वाले इन उम्मीदवार की सभा सिर्फ मनोरंजन साबित हुई। फिर मतदान के पहले उनके वायरल अंधविश्वास भरे वायरल वीडियो से भी ग्राफ घटा और फिर दल बदलू के उनके ऊपर लगे पुराने आरोप तो अपनी जगह थे ही जो हार के कारण थे । इतना ही नहीं कांग्रेस उम्मीदवार पार्टी के स्टार प्रचारक थे स्वयं के चुनाव में भी इनके स्टार नही चमके । ये ना तो अपने समाज के वोट ले और ना ही युवाओं के । इन्हे सिर्फ कांग्रेस के वोट बैंक पर इज्जत बचानी पड़ी । स्वय के प्रभाव से तो ये जनाब पूरे चार सौ वोट भी नहीं ले सके । और परिवर्तन की लहर में बाजी मारने के मुगालते में कांग्रेस को भी शहीद कर दिया, जबकि महापौर चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ने कांग्रेस होने के संकेत स्थापित कर दिए थे।
  • गुटबाजी के बाद भी एकजुट भाजपा
    रतलाम शहर की बात करें तो शहर से भाजपा का टिकट तो पहले से ही तय था और भाजपा ने संगठन स्तर पर अपनी तैयारियां भी शुरू कर दी थी। हालाकि शहर में भाजपा की गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है। लेकिन खासबात तो यह है कि चुनाव के दौरान भाजपा एकजुट हो जाती है जिसका असर परिणामों पर सामने आता है भीतरघात जैसे सवालों पर मतदान के दौरान भाजपाई पहरेज करते दिखते हैं। जो बंपर जीत को दर्शाता है। लेकिन भाजपा को अब परिणामों पर छाती फूलने से बेहतर है वह अपने संगठन पर ध्यान दें तो भाजपा स्वय मजबूत रहेगी । सैलाना में हार का कारण एक यह भी है कि भाजपा संगठन कमजोर है, और जिम्मेदार बड़े नेता मजबूत सीट को और मजबूत बना कर सिर्फ अपना राजनेतिक कद बढ़ते रहे ।

By V meena

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