रतलाम ivnews
………जीवन मे आये है तो जीना ही पड़ेगा , जीवन है , अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा । रुक रुक कर मुसीबतों में जीना ही पड़ेगा ……..
जी हाँ हम बात कर रहे उस परिवार की जो खतरों के खिलाड़ी है । रस्सी पर ही तरह तरह के खेल दिखाते हैं । तमाशबीन भले ही सहम जाए , लेकिन इस परिवार के मासूम बच्चों से लेकर बड़े तक ऐसा खेल तमाशा कर अपना पेट पालता है । परिवार इसे नट समाज की पुरानी प्रथा बताता है जो पीढ़ियों से चली आ रही है । शहर में इन दिनों छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के सरवानी गांब के निवासी करण नट अपने परिवार के साथ खेल दिखाने आए हुए हैं । यह परिवार पहले गुजरात गया था , वहां से मध्यप्रदेश के रतलाम में आया हुआ है । परिवार में करण की पत्नी रुक्मिणी , तीन साल की सुरेखा सहित एक और बेटी सहित चार लोग है ।

— इस तरह होता हैं खेल
बांस के सहारे बंधी एक रस्सी पर तीन साल की बेटी चढ़ती है । जो बेलेंस बना कर तरह तरह के खेल दिखती है । रस्सी पर ही थाली रख कर खड़े होना । टायर पहिया चलना जैसे हैरत अंगेज करतब देख , देखने वाले भी दांतो तले उंगली दबा लेते है । लेकिन यह करतब इस परिवार के जीवन निर्वहन का सहारा है ।
— ऊपर वाला मेहरबान है
पिता करण का कहना है डर की क्या बात यह तो बेलेंस का खेल है रस्सी पर हम झूलते है रक्षा भगवान करता है । एक दिन में सात सौ से एक हजार रुपए तक कमा लेते है ।
— यह काम नहीं छोडूंगी
सिर्फ 9 साल की बेटी सुरेखा कक्षा तीसरी में पढ़ती है । जब उससे बात करी तो मासूम बेटी ने बेवाक जवाब देते हुए बताया दो साल पहले दादा ने यह कला सिखाई थी । अभी स्कूल की छुट्टी है तो आ गए , पेट के लिए सब कुछ करना पड़ता है , यह काम मै नहीं छोडूंगी , मुझे कोई डर भी नही लगता है ।

— इस बचपन के लिए क्या
एक तरफ हमारी सरकारें बेटियों के पढ़ने से लेकर शादी व्याह तक के लिये मोटे आबंटन की योजनाएं बनाती है । मध्यप्रदेश में तो मुख्यमंत्री ने मामा बन कर बहन भांजियों की खुशियों के लिये कल्याण कारी योजओ की सौगातें दे कर अपनी पीठ थपथपाई है लेकिन दूसरी तरफ नट समाज अपनी पुरानी प्रथा को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते हुए बचपन को ही खतरे से खेलने में लगा रहा है जो सरकार की योजनाओं पर सवाल ही खड़ा करता है कि पेट के लिये दर दर भटक कर क्या क्या करना पड़ रहा है ……