
रतलाम ( ivnews ) कला , संस्कृति , साहित्य और वैश्विक संवाद ही मनुष्य की रक्षा कर सकता है । पूरी दुनिया में इस वक़्त यह बात महसूस की जा रही है कि हमारी कलाएं ही संवेदनशीलता को जीवित रखती हैं । विश्व की बदलती राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों के बीच साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका उभर कर सामने आ रही है । उजली सुबह की आज सभी दूर महसूस की जा रही है।

उक्त विचार सुप्रसिद्ध कवि, कथाकार एवं रविंद्र नाथ टैगोर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति संतोष चौबे ने समकालीन कविता के महत्वपूर्ण कवि, अनुवादक प्रो. रतन चौहान के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित पुस्तक ‘ उजली सुबह की आस में ‘ का विमोचन करते हुए व्यक्त किए। श्री चौबे ने कहा कि इस पुस्तक का संपादन युवा रचनाकार आशीष दशोत्तर ने कर शहर की साहित्यिक परंपरा में नया अध्याय जोड़ा है। उन्होंने कहा कि एक रचनाकार कभी समाज विमुख नहीं होता। वह समाज के सापेक्ष अपनी रचनाशीलता को आयाम प्रदान करता है । रतन चौहान पर केंद्रित यह पुस्तक इस रचनाशीलता की एक कड़ी है।

प्रो. रतन चौहान ने अपने वक्तव्य में कहा कि कवि का अंतर्विरोध उसे रचना प्रक्रिया से विमुख नहीं होने देता बल्कि सही दृष्टि प्रदान करता है । उसके सामने कई रास्ते होते हैं मगर उसे ख़ुद ही तय करना होता है कि किस रास्ते पर चलना है । हर दौर में रचनाकार के समक्ष ऐसी विषम परिस्थितियों मौजूद रही हैं लेकिन हर दौर में रचनाकार ने यह साबित किया है कि जनसापेक्ष रचना प्रक्रिया ही प्रभावी और सार्थक होती है।
वनमाली सृजन केन्द्र की राष्ट्रीय संयोजक ज्योति रघुवंशी ने इस पहल की सराहना की। उन्होंने कहा कि डॉ. सी. वी. रमन विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2026 के लिए विष्णु खरे फैलोशिप प्रोफेसर रतन चौहान को देने की घोषणा की गई है।

वरिष्ठ रंगकर्मी कैलाश व्यास ने पुस्तक का एक अंश पढ़ते हुए चौहान साहब के रचनात्मक अवदान पर प्रकाश डाला और प्रकृति तथा मनुष्य के अंतर्संबंधों को विस्तार से उल्लेखित किया। युसूफ़ जावेदी ने कहा कि प्रो. रतन चौहान का रतलाम ऋणी है। वे यहां के साहित्य जगत के लिए एक विश्वास की तरह हैं । नई पीढ़ी के साथ क़दम मिलाकर आज भी चल रहे हैं। वे हमारी ताक़त हैं।
पुस्तक के लेखक एवं संपादक आशीष दशोत्तर ने कहा कि रतलाम शहर के साहित्य जगत के लिए इस अनूठी कृति में प्रो. चौहान के जीवन और रचनात्मकता के विभिन्न आयामों का समावेश किया गया है। यह पुस्तक चौहान साहब के पूरे जीवन का सार है। इस पुस्तक में देश के सौ से अधिक प्रख्यात रचनाकारों का मूल्यांकन भी समाहित है। इस अवसर पर पुस्तक यात्रा के तहत पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई गई।
इनकी मौजूदगी रही
अतिथियों का स्वागत जनवादी लेखक संघ रतलाम के अध्यक्ष रणजीत सिंह राठौर, जन नाट्य मंच के कीर्ति शर्मा , वनमाली सृजन केंद्र अध्यक्ष आशीष दशोत्तर, युगबोध अध्यक्ष ओम प्रकाश मिश्रा , शायर सिद्दीक़ रतलामी, कैलाश व्यास , डॉ.मनोहर जैन , ललित चौरडिया, विनोद झालानी, मांगीलाल नगावत, ललित भाटी, डॉ सुलोचना शर्मा ने किया। संचालन रंगकर्मी युसूफ जावेदी ने किया और आभार सचिव सिद्धीक़ रतलामी ने माना। आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार श्याम माहेश्वरी, श्रेणिक बाफना, प्रणयेश जैन, महावीर वर्मा, विष्णु बैरागी, विक्रांत भट्ट, रंगकर्मी ओमप्रकाश मिश्र, पत्रकार सुरेन्द्र छाजेड़, नरेंद्र सिंह पंवार, नरेंद्र सिंह डोडिया, आई.एल.पुरोहित , मदन यादव, शोभना तिवारी, प्रवीण दवेसर , योगिता राजपुरोहित , आशा उपाध्याय , पूजा चोपड़ा, सुभाष यादव, दिनेश जैन, सतीश जोशी, राजेश रावल, मुकेश सोनी सहित सुधिजन मौजूद थे।