राजनीति के लिये धर्मनीति का सहारा लिया जा रहा है । धर्म ऐसा संवेदनशील विषय है की कोई भी इस विषय पर खेल सकता है क्योंकि राजनीति ने धर्मो को बांटने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है । रतलाम शहर में तो विगत दो महीनों से तो धर्म राजनीति का प्रमुख मुद्दा बना दिया गया है । अचरज की बात तो यह है कि जब बीरबली के अपमान का मुद्दा राजनीति में उछाला गया तब धर्म बकालत करने वाले नेता से लेकर संगठन तक दो खेमो में नजर आए । एक खेमा कुछ बोलने की हिम्मत कर सका तो दूसरे खेमे ने राजनेतिक मजबूरियां बता कर चुप्पी साध ली । विरोधियों ने इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । खैर… संकट मोचन का अपमान राजनीति के हल्ले में दबा दिया गया । यह मामला शांत हो पाता इससे पहले ही फिर धर्मनीति पर राजनीति करने का दूसरा मामला उछाला गया जो अभी गर्म है । इस मामले की स्क्रिप्ट भी राजनीति की कलम से लिखी जा रही हैं क्यो की यह मुद्दा भी दो राजनेतिक मानसिकता वालो की सियासत से जोड़ा जाने लगा है । एक तरफ वह लोग हैं जो बीरबली के अपमान पर चुप है । दूसरी तरफ वह लोग हैं जो बीरबली के अपमान पर सड़क पर आए थे , ऐसे लोगो पर निशाना साध कर चुप्पी वाले लोगो ने अब अपनी झिझक मिटाने के लिये संत के अपमान को मुद्दा बनाने की राजनैतिक चाले चलनी शुरू की है । धर्म के प्रतिनिधि संतो का तो कोई भी अपमान नहीं कर सकता , लेकिन धर्मनीति की बैसाखी पर राजनीति कर पर्दे के पीछे से मास्टरमाइंड सफेदपोशो ने स्क्रीप्ट लिखनी शुरू की और संत समाज को भी मोहरा बना
लिया । मज़े की बात तो यह है कि चर्चा तो इस बात की भी है कि इस मुद्दे पर एक वरिष्ठ सन्त ने भी एक राजनेता को फोन किया बस अब क्या है , बीरबली के अपमान पर चिल्लाने वालो को दबाने का मौका मिल गया , जबकि यह मामला भी दो संतो के बीच आश्रम की प्रॉपर्टी से जुड़ा है। अब राजनीति का शिकार होकर आरोप प्रत्यारोप की भेंट चढ़ा है । इस खेल में पर्दे के पीछे कौन है , सब जानने लगे जितने मुंह उतनी बात रोज कानोतक पहुंचती है , चुनावी साल है , सियासत के लिए सब कुछ संभव है । लेकिन धर्म की रक्षा और सम्मान की आड़ में पॉलिटिकल ड्रामा कितना असरदार हो सकेगा यह तो समय की गर्त में ही छिपा है जो धर्म,राजनीति और शहर के स्वास्थ्य के लिए ठीक
नहीं है …..!


भक्त प्रहलाद का भंडार रो रहा रसोई
वाला ?
नगर सरकार का राजपाट सम्हाले भक्त प्रहलाद ने राजतिलक के मौके पर अपने भक्तो के लिए भोज का आयोजन किया । अपना राजनेतिक कद ऊंचा बताने के लिए ,हुआ भोज गैरसरकारी माना जा रहा था। लेकिन भोज का खर्च सरकारी कर दिया । अब इस भोज का लाखो रुपये का भुगतान किस नियम के तहत किया जाए । नियम,राज तिलक समारोह में एक लाख रुपये तका का प्रावधान है और बिल भारी भरकंप है । मौखिक हामी भरने वाले साहब भी चले गए, आये दूसरे साहब ने नियम बता दिया , और ये साहब भी अनेको तरह के भुगतान के दवाब में यहां से जाने की पेशकश कर चुके है । प्रहलाद सत्ता के सुख में मदहोश है । भक्तो का प्रसाद पच गया । लेकिन प्रसाद तैयार करने वाला अपने भुगतान को लेकर चक्कर लगा है , ” अच्छा सिला दीया तूने …..?
घर बैठो मौज करो ….
यदि किसी को घर बैठे मौज मस्ती की नोकरी करना हो तो नगर निगम से अच्छा कोई विकल्प नहीं है । सेटमैप हो या दैनिक वेतन भोगी , बस एक बार मस्टर में नाम जुड़वा लो आपके भी अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे । यहां अनुकम्पा नियुक्ति वालो को भी देखो मलाई चाटने में लगे हैं । घर बैठो , दूसरी जगह काम करो , हर महीने निगन का वेतन घर आ जायेगा नगर निगम से लेकर नगर सरकार तक के मोटे खर्च और शौक मौज को पूरा करने में हर व्यक्ति अंधी कमाई में लगा है । अपने शौक को पूरा करने के लिए वसूली करना ही एक माध्यम है । निगम में ऐसे सैकड़ो लोग हैं जो जलप्रदाय ,लोकनिर्माण, स्वास्थ्य सहित अन्य विभागों में पदस्थ है लेकिनअपनी टेबल पर नज़र नही आते , ऐसे लोगों कीहाज़री भी लग जाती हैं और वेतन भी मिल जाता
है । फिर राजनीतिक प्रभाव की नियुक्ति हो तो काहे का डर । बस वसूली का डंडा दिखाओ जनता को चमकाओ और आय बढ़ाओ ।
फुलछाप को अफरा
इन दिनों फूलछाप वाले ही फूलछाप वालो को लेकर चौराहों पर चर्चा करते दिखते हैं कि फूलछाप के वे लोग जो सत्ता की मलाई चाट रहे है ऐसे लोगो को अफरा चढ़ गया है । फिर पंजाछाप वालो में ऐसा कोई डॉक्टर सर्जन नही जो उपचार कर सके । पंजाछाप वालो कोआस है कि हम कमजोर जरूर है लेकिन फूलछाप वालो का इस बार उपचार करने में जनता ही ” धूम मचा दे रंगजमा दे” की तरह काम कर सियासत का चेहरा बदल सकेगी । फुलछाप वाले भी दबीजुबान से सरकार बनने में आशंकित है ।

मेडिकल कॉलेज को मिली पहचान

आखिरकार चुनावी साल में बेनाम के सरकारी मेडिकल कॉलेजो को पहचान देते हुए नामांकरण करने की प्रदेश के मुखिया ने घोषणा कर दी है । मालवा अंचल में आये सीएम ने एक तीर से कई निशाने लगाए है । विगत पांच सालों से अपने नाम की आस में रहे रतलाम मेडिकल कॉलेज को अब ड़ॉ लक्ष्मी नारायण पांडे मेडिकल कॉलेज के नाम से पहचाना जाएगा । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नीमच में यह घोषणा की है। उन्होंने नीमच, मन्दसौर में भी मेडिकल कालेज खोले जाने की घोषणा की। नीमच मेडिकल कालेज का नाम पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा के नाम पर होगा। मन्दसौर मेडिकल कालेज के नाम पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के नाम पर और रतलाम मेडिकल कालेज का नाम मालवा के गांधी कहे जाने वाले पूर्व सांसद डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय करने की घोषणा भरे मंच से की है। पूर्व सांसद डॉ पांडे ने हमेशा सुशासन , स्वच्छ और निर्भीक राजनीति की है । पूर्व प्रधान मंत्री अटलबिहारी वाजपेयी , भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे भी डॉ पांडे के सुझावों को तज्जबो देते थे । ऐसे छबि के व्यक्तित्व के नाम पर मेडिकल कॉलेज होने से इसका गौरव बनाये रखने के लिए अब मेडिकल कॉलेज प्रशासन को काम भी ऐसा ही करना होगा । हालांकि अब तक मेडिकल कॉलेज व्यवस्थित और सम्पूर्ण उपचार की ओपीडी तक शुरू नही हो सकी है ।

By V meena

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