
अपनी राजनीतिक कोई समझ नहीं सकेगा , क्या, बहुत भारी है ” क्या
हर बात में ” क्या” तकिया कलाम का इस्तेमाल करने वाले फुलछाप के युवा नेता के *” क्या ने क्या “* कर डाला , की शहर के राजनैतिक समीकरण ही बिगाड़ कर रख दिये … क्या .., को रतलामी नेता ने प्रथम नागरिक बनने से क्या रोका , युवा नेता का देर आए दुरुस्त आए की तर्ज पर ऐसा गद्दा घुमा की अपने इंदौरी राजनेतिक गुरु की बदौलत ताजपोशी तो हुई उससे बड़ी बात *“क्या”* केबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिल गया,*” क्या”* फुलछाप ने एक नाराज़ *क्या* को मना कर बड़े नेताजी सहित उनके छोटे अनेको सेवको को नाराज़ कर दिया *“क्या”* । शायद किसी भी फुलछाप के पार्ट वन को यह अंदाजा नही होगा कि ये ‘*क्या”* क्या गुल ख़िलाएगा की फुलछाप कम्पनी की एक तरफा चल रही मार्केटिंग के शेयर भी गिर जाएंगे ..? फुलछाप के इस *युवा क्या* के पास अपने वोट और नोट की कोई कमी नहीं है। ताजपोशी होने बाद जब सहज रूप से केबिनेट दर्ज प्राप्त युवा से बात हुई तो उन्होंने अपनी चिरपरिचित शैली में कहा*”मेरी राजनीति अभी समझी नहीं क्या, अब समझ आ जायेगा, क्या, अभी तो खेल शुरू हुआ है क्या* ….
*जो अपेक्षित है वो उपेक्षित है ……?*
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले आ रहे प्रारंभिक गोपनीय सर्वे में फुलछाप प्रदेश में कमजोर दिख रही हैं । यह सर्वे देख फुलछाप सत्ता से लेकर संगठन तक सारी ताखत झौकने की रणनीति पर काम शुरू हो गया है । सत्ता में लाभदायक पदों पर नाराज नेताओ की ताजपोशी कर उन्हें मनाया जा रहा है । वही संगठन भोपाल से वरिष्ठ नेताओं को जिलो में भेज कर कुछ खुली तो कुछ बन्द कमरे की बैठक कर फीडबैक लेने में जुटा है । अब तक हाशिए पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और पूर्व पदाधिकारियों की भी बैठके ली जा रही हैं । इन बैठकों में उन्हें ही बुलाया जा रहा है जो अपेक्षित है । लेकिन मजेदार बात तो यह है कि अपेक्षित नेता भी बैठक में जा रहे और अपने आप को उपेक्षित मान रहे है । बैठक अपेक्षित नेताओ को बुलावे के लिए भी फुलछाप को खासी मशक्कत करनी पड़ती हैं , क्योंकि अपने आप को उपेक्षित नेता जाने से कतराते हैं , इन नेताओं का मानना है कि बैठक होगा क्या ? क्या बैठक लेने वाले वरिष्ठ नेता सही रिपोर्ट देगे और संगठन क्या कार्यवाही करने की हिम्मत दिखायेगा इसकी क्या ग्यारंटी ..? एक बार सत्ता से उखड़ जाने दो सब समझ आ जायेगा , कार्यकर्ता क्या होता है । अब फुलछाप भी इन उपेक्षितो को फुलछाप की गुटीय राजनीति में पार्ट टू माना जा रहा है । बैठक में भी नेता और पदाधिकारी अपनी पीड़ा उजागर कर संगठन और सत्ता को कटघरे में खड़ा करने में नही चूक रहे है जो संगठन और सत्ता पर मंडराते खतरे के बादल की तरह ही है जो चुनाव के समय बरस सकते है …?
*कहीं मुगालता नहीं हो पँजाछाप को*
फुलछाप के भीतर चल रही आपसी खींचतान गोपनीय सर्वे में आ रहे परिणामो से जहां फुलछाप अपनी कमजोरी दूर करने की मशक्कत में लग गए हैं , वहीं पंजा पार्टी इतने मुगालते पाले हुए हैं कि वह प्रदेश की सियासत थाली में सजी मिलने के आस में है । पँजाछाप को भ्रम हो गया है कि जनता ने चुनाव के पहले ही उनके राजयोग बना दिए हैं । पँजाछाप कि जब फुलछाप वालो से बात होती हैं तो फुलछाप भी अपने इस बार राजयोग नही होने की बात कहते हुए पँजाछाप के सीने को फुला देती है , और कोई भी आयोजन, आंदोलन में पँजाछाप वाले भी नोकरशाही को ललकारते हुए है अभी सिर्फ छह महीने और ठहरो सरकार आते ही हिसाब कर देंगे …? जब ऐसा ही एक वाक्य हुआ तो एक ख़ाकीवर्दी वाले साहब भी बोलने से नहीं चूके और बोल पड़े *भरोसे की भेस पाड़ा नही दे दे* सब कुछ पलों पर मुगालता मत पालो……