
राजनीति में भी प्रतिस्पर्धा बहुत तेजी से नासूर की तरह फैल चुकी हैं । अब पक्ष से विपक्ष की प्रतिस्पर्धा से कहीं अधिक एक ही दल के नेताओ में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा होती है । फुलछाप वाले ही दल को देख लीजिए सीएम साहब के जाते ही नेता एक दूसरे पर किसका कद बड़ा किसका घटा जैसी गणित में लगे हैं । सीएम साहब ने स्वागत के दौरान किसे कितनी तबज्जो दी , किससे एक पल बात की , अपने भाषण में किस नेता का कितनी बार नाम लिया जैसा विश्लेषण किया जा रहा है । और राजनीति के उल्टे चश्मे किया गया आंकलन की बातें चौराहे पर भी पहुंच रही हैं । सीएम साहब के दौरे में कोई नेता चरणों में गिरा , तो कोई राजनीति के हाशिए में होने के बाद भी ” दम रखता है बॉस” की तरह नज़र आया। विधानसभा सभा की कवायत में लगे नेताओं को कितना महत्व मिला , तो कोई नेता किसी दूसरे प्रतिस्पर्धा वाले नेता के बढ़ते राजनेतिक कद पर बड़ी बड़ी आंखों से तर्राता नज़र आया । सीएम साहब तो चले गए लेकिन स्थानीय से जिले भर के नेताओं को अपना अपना राजनेतिक कद नापने में व्यस्त कर गए । अब राजनीति का उल्टा चश्मा लगा कर घूम रहे नेताओं को देखिए कोई जिलाध्यक्ष तो कोई विकास प्राधिकरण के सपने देखने में जुट गया तो कोई इस बार टिकट बदलने की संभावना जताते हुए चौराहे पर लगी चौपाल पर नज़र आया , फुलछाप के नेताओं से लेकर समर्थक तक अलग अलग चश्मे से आंकलन करता रहा । लेकिन अपने गिरते राजनेतिक कद को लेकर कुछ नेता चिंतित भी नज़र आए । जो आने वाले दिनों में सांवरिया सेठ , बगलामुखी से लेकर भोपाल तक के चक्कर लगाने की योजनाएं बनाने लगे हैं …? 】
■ तो काला कुआँ काट खाएगा …?
लो अब तक स्थानीय पँजाछाप पर नूरा कुश्ती का आरोप लगता था लेकिन इस बार मुख्यमंत्री जब शहर आए तो इन पँजाछाप ने भी हिम्मत की । और ऐसा विरोध प्रदर्शन किया कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे । तय रणनीति के मुताबिक पँजाछाप के दो अलग अलग गुट दो अलग अलग स्थानों पर एकत्रित हुए , काले झंडे, काला कफ़न और काले कपड़े पहले काले गुब्बारो का गुच्छा लेकर आए । पुलिस भी तैनात रही , सीएम साहब के आने के पहले पूरा विपक्षी पॉलिटिकल ड्रामा किया । मीडिया में अपनी सारी रस्मे कैद करवाई और कुछ हंगामा शुरू कर साहब के आने के पहले ही गिरफ्तारी दे दी । पुलिस ने भी राहत की सांस ली । लेकिन पुराने पँजाछाप के नेता इस ड्रामे से दूर रहे जो यह कहते रहे ये तो रस्म अदायगी की काले झंडे तो हमारे समय बंजली हेलीपैड के पास दिखाए थे , फिर पुलिस ने खेतो में दौड़ा दौड़ा कर डंडे बरसाए थे । ऐसा प्रदर्शन अब कहां होता हैं । अब तो सिर्फ राजनीति में मीडिया और सोशल मीडिया के लिए राजनीति करना पड़ती हैं , जिसमे काला कुआँ काटता नहीं सिर्फ चमकता है 】

■ तय हो गया हम बुद्धिजीवि है ….?
मुख्यमंत्री की मौजूदगी में प्रबुद्ध वर्ग से संवाद के आयोजन के लिये प्रशासन ने किसी माननीय के मार्गदर्शन में शहर के प्रबुद्ध वर्ग का चयन किया । अपना चयन होते ही दो दिनों तक प्रबुद्ध वर्ग के व्यक्तित्व ने होम वर्क किया । राजनीति , सरकार की जनकल्याणकारी नीति , कारपोरेट सेक्टर सहित अन्य विषय पर तैयारी की । कहा गया था सीएम साहब एक एक के पास जाकर संवाद करते हैं । ऐसी स्थिति हर एक चयनित प्रबुद्ध वर्ग अपने ज्ञान के पिटारे से अलग हट कर अपने विचार रखने का इच्छुक था । कहा गया था यहां जो मंथन होगा वह प्रदेश स्तर पर शरीक होगा । चयनित प्रबुद्ध वर्ग को बकायदा प्रवेश पत्र भी जारी हुए । सारा प्रबुद्ध वर्ग समय से पहले कलफदार कपड़ो में आयोजन स्थल पर पहुंचा, फोटो की सेटिंग जमाई । सीएम साहब आए और एक ही नजर में सोचने लगे या तो मै बुद्धि जीवि हूँ या मेरे से ये अधिक ज्ञान रखते है । टकराव की स्थिति ना बने , बस अपने मन से अपनी बात की और अपना भाषण परोसा और निकल गए । अब प्रबुद्ध वर्ग बाहर आकर अपने लोगो को क्या कहता … उसने भी अपना मन समझा लिया कि मै प्रबुद्ध वर्ग हूँ । दंडाधिकारी के हस्ताक्षर से जारी कार्ड मेरी बुद्धि का प्रमाण है, कोई शक…..?
■ चलते चलते
सीएम साहब ने पहले तो प्रशासन के बड़े साहब की पीठ थपथपाई । साहब ने भी फील गुड महसूस किया । लेकिन जाते जाते बोल गए , प्रोटोकॉल समझो सीएम के आसपास किसे बैठाया जाता हैं ……