
इंदौर—— एक साथ लाशों का उठना… चिताओं का जलाना.. हर तरफ चीख… मातम… दिनभर हूटर बजाती एम्बुलेंस का दौड़ना .. पीएम में डॉक्टरों का थकना … श्मशान छोटा पड़ना …। जैसे अनेको मंजर कोरोना के समय देखे होंगे । हर रोज व्यवस्था को नकारा साबित करनी की खबरे और परिवार के उजड़ जाने की बाते हर एक के कानों तक पहुंचा होगा । चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन ठीक ऐसा ही मंजर इंदौर में हुआ तो एक बार फिर घाव हरे हो गए ….। हे शारदे भवानी आपकी उपासना में लगे भक्तो पर ऐसा कहर क्यो ढा दिया । माते .. कोई पूजा की थाली लेकर तेरे दरबार मे मथ्था टेकने आई थी , तो माता तेरे नो रूपो की देवी कन्या भोज में भोग लगा रही थी … लेकिन अचानक ये क्या हुआ … शक्ति सरूपा की भक्ति में काल कैसे आया । गहरी वाबडी धंसी और लग गया लाशों का ढेर ….किसी की गोद सूनी हो गई.. तो कोई माँ की ममता से विछुड़ गया …? कोई पिता , भाई इस कहर का शिकार हुआ … ” हे माँ , ये क्या कर डाला ….?
■— लाज़मी है जनाक्रोश
इंदौर के बेलेश्वर मंदिर में हुए हादसे पर लोगो का गुस्सा जमकर फूटा, हादसे के एक दिन बाद घायलों के हाल जानने पहुंचे सीएम शिवराज सिंह चौहान और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के सामने इंदैर की जनता ने जमकर नारेबाजी की, सीएम के सामने ही लोगों ने प्रशासन मुर्दाबाद, नगर निगम हाय-हाय, मौतों का जिम्मेदार प्रशासन है के नारे लगाए। सीएम ने हादसे में घायल लोगों के हाल जाने और घटनास्थल का भी दौरा किया। वहीं शुक्रवार सुबह से ही क्षेत्र के सभी बाजार और दुकानें शोक स्वरूप बंद रही। सभी गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ है। सपना संगीता टॉकीज के सामने वाली गली मैं स्थित बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में गुरुवार की घटना के शोक स्वरूप , सुबह पटेल नगर, स्नेह नगर, अग्रवाल नगर, सिंधी कॉलोनी, जागृति नगर, सर्वोदय नगर , पंचशीलनगर की दुकान बाजार आदि क्षेत्रों की दुकानें और बड़े बाजार नहीं खुले। इन क्षेत्रों की गलियों में भी सन्नाटा पसरा रहा। हर जगह घटना को लेकर ही चर्चा होती रही। हुए हादसे में कच्छ पटेल पाटीदार और सिंधी समाज के लोग ज्यादा प्रभावित हुए हैं। इस ह्रदय विदारक हादसे में 36 लोगो का मौत के मुंह मे समां जाना , इंदौर ही नही हर एक को रुला जाना और व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है कि जब जर्जर वाबडी की पूर्व से ही शिकायत थी तो क्या कर रहा था प्रशासन , क्या प्रशासन इसी तरह के हादसे के इंतजार में था..? खैर ….. अब यह हादसा भी राजनैतिक मुद्दा बनेगा , मानव अधिकार आयोग से लेकर हर एक अपनी सक्रियता बताएंगे , सरकारी मदद , और वो सब होगा जो मौत के इस जख्म को भरने के लिए करना पड़ेगा । लेकिन एक सवाल वही के वही खड़ा रहेगा एक साथ उठा लाशों के मंजर का जिम्मेदार कौन… क्या अब कोई ” ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना …” की भरपाई कर सकेगा …?