
रतलाम ( विशेष संवाददता) )मध्यप्रदेश के सरकारी सिस्टम पर तमाचा है रतलाम जिले की सैलाना तहसील का फूफीरुंडी गांव, जहां बच्चे शिक्षा के लिए झोपड़ी में बैठने को मजबूर हैं और अधिकारी, जनप्रतिनिधि और प्रशासन आंखें मूंदे बैठे हैं। जब कोटा (झालावाड़) में स्कूल की छत गिरने से मासूम बच्चों की जान गई, तब भी प्रशासन नहीं चेता — और अब फूफीरुंडी जैसे गांव मौत को दावत देते स्कूल भवनों की खुली नजीर बन गए हैं।
यहां के शासकीय प्राथमिक विद्यालय की हालत इतनी खस्ता है कि स्कूल की छत से मलबा गिर चुका है, दीवारें सीलन से भरी हैं, और बारिश में पानी अंदर बहता है। हालात इतने बदतर हैं कि शिक्षकों ने खुद अपने दम पर स्कूल भवन के सामने बांस-बल्लियों और कवेलू की एक अस्थायी झोपड़ी बनाकर उसमें बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया है।
सरकारी स्कूल या कब्रगृह?
स्कूल की छत से समय-समय पर सीमेंट का मलबा गिरता है, और बारिश में छत टपकती है। बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए शिक्षक भंवरलाल खराड़ी ने प्रशासन की तरफ देखे बिना खुद ही झोपड़ी बनाकर उसमें पढ़ाई शुरू कर दी। अब पिछले एक महीने से झोपड़ी ही स्कूल बन गई है।
जहां सिस्टम नाकाम, वहां शिक्षक बना देवदूत
जब शिक्षा विभाग, पंचायत, जनपद और विधायक-नेता सबने आंखें फेर लीं, तब शिक्षक भंवरलाल खराड़ी ने अपने कर्तव्य की मिसाल पेश की। बच्चों के जीवन को खतरे में डालना उन्हें गंवारा नहीं था, इसीलिए झोपड़ी में भी क्लास लग रही है, बच्चे पढ़ रहे हैं, और भविष्य की नींव गढ़ी जा रही है — वो भी पिघलती मिट्टी के नीचे, रिसते टपकते तिरपाल के नीचे।

नेता-अधिकारी सब बेखबर, बच्चों की जान की कीमत क्या है?
सरकारी तंत्र की असंवेदनशीलता का यह आलम है कि स्कूल भवन के हालात की जानकारी होते हुए भी कोई सुध लेने नहीं आया। ना जनपद सीईओ, ना जिला शिक्षा अधिकारी, ना पंचायत सचिव, ना सरपंच — सब मौन हैं। फूफीरुंडी की इस झोपड़ी से भले ही बच्चों का भविष्य रोशन हो, लेकिन सिस्टम का मुंह काला हो चुका है।
क्या इंतज़ार है किसी हादसे का?
क्या अब भी हम किसी हादसे का इंतजार कर रहे हैं? क्या कोटा की तरह यहां भी बच्चों की जान जाएगी, तब जाकर सरकार जगेगी?
सवाल हैं, जिनका जवाब चाहिए:
रतलाम जिला प्रशासन कब तक आंखें मूंदे बैठेगा?
बच्चों की जान की कोई कीमत है या नहीं?
क्या शिक्षकों को ही अब भवन निर्माण भी करना होगा?
नेताओं के भाषणों में शिक्षा “प्राथमिकता” है, ज़मीनी हकीकत में क्यों नहीं?