मेरे प्यारे शहरवासियों
मै आपका रत्नपुरी से रतलाम बना एक प्यारा शहर जो साल में सिर्फ एक बार आप लोगो से रूबरू होने आता हूँ । आप सब लोगो को तो पता ही है कि वसंत पंचमी पर्व पर मेरा स्थापना दिवस होता है , इस दिन मेरे जयकारे लगते है मुझे बसाने वाले मेरे महाराज रतनसिंह और सज्जनसिंह को याद किया जाता है । उनके स्टेचू पर पहुँच कर मालाएं पहनाई जाती है , तमाम रस्मे अदा करने के बाद एक साल तक सब कुछ भूल जाते है ।
मेरे प्यारे रहवासियों !
आपको मालूम है मेरी उम्र अब 374 वर्ष को हो गई है । लेकिन मै अब भी अपने शहर के विकास से संतुष्ट नहीं हूं ..! लेकिन जो कुछ विकास किया गया है उससे प्रसन्न भी हूं । सरकारी आवंटन खर्च कर  हर बार सिर्फ  विकास पर चर्चा करना यहाँ के सफेद पोशों का काम हो गया है । विकास की आड़ में सिर्फ इमारते बनाना ही विकास नहीं है। इससे तो शहर के जिम्मेदार अपने जेबो का विकास कर रहे है ? लेकिन मेरे शहर रहने वाली मेरी आम जनता आज भी बेरोजगारी , भ्रष्टाचारी , भाई भतीजावाद और बढ़ते अपराधो से त्रस्त हैं। मेरी बसावट करने वाले राजवंश के राजाओं ने शहर विकास की जिस तरह से कल्पनाएं की थी और रियासत के समय जिस तरह का शहर था वह अब नहीं बचा है । अब तो अमीरी और गरीबी की तर्ज पर नए रतलाम और पुराने रतलाम की बाते होने लगी है ?  विकास की बैसाखी पर राजनीति के लिये शहर को महानगर बताने वाले सिर्फ अपनी राजनीति के महानायक बनने की नीयत रखते है । प्राचीन समय के स्मारक , इमारतों , बावड़ियों को तो संरक्षण दे नही सके और अब नए रतलाम के नाम से बाशिंदों को ठगा जा रहा है ।
मुझे मलाल है  शहर का जिस तरह से   विस्तार होना चाहिए था वह अब तक नही हो  सका है । स्वास्थ्य सेवाएं , शेक्षणिक स्तर , रोजगार , और मूलभूत सुविधाओं को अब तक कोई ठोस आधार नही मिल सका है । रियासत के समय के साक्ष्यों की कोई सुरक्षा नही हो कर खंडहर बनाया जा रहा है । विकास के नाम पर सिर्फ सरकारी आवंटन खर्च कर बड़ी बड़ी इमारते खड़ी की गई है , लेकिन शहर के नेतृत्वकर्ताओं ने राजवंश की अंतिम निशानी राजमहल तक को अधिग्रहण तक नही करवाया , और आज जब यह सुनता हूं कि जिस दरबार हॉल में सरकार फैसला करती थी वहां अब शौकीनों के जाम छलकते है , परिन्दों ने इसे अपना पनाहगार बना लिया है , शहर में स्वच्छता के नाम पर जनधन का चूना लगाया जा रहा है लेकिन जिम्मेदार राजमहल की सफाई तक नही करा सके है सिर्फ बाहरी आवरण की सजावट कर अपनी पीठ थपथपाई जा रही है लेकिन में इसमें भी खुश हूं की मेरे जख्म पर मरहम लगाने की शुरुआत तो हुई ….?
मेरे शहर के बाशिंदों !
क्या आप शहर के विकास और विस्तार से खुश है ? क्या आपको सारी मूलभूत सुविधाएं मिल रही है ? क्या शहर के नेतृत्वकर्ता जनता के साथ न्याय कर रहे है ? ज़रा सोचिए .. और मेरे जयकारे लगाने के पहले विकास की वैसाखी पर चलने वाले उन जिम्मेदारों से पूछिए अपने जनता के लिये क्या किया ? क्या मेडिकल कॉलेज में दवाइयां मिल रही है? क्या सरकारी अस्पताल में समय पर उपचार मिल रहा है? क्या भय मुक्त पुलिस सुरक्षा मिलती है? क्या सुशासन से प्रशासन तंत्र काम करता है? क्या हर एक के लिए रोजी रोटी की समस्या का समाधान हो गया है, क्या हर एक के चेहरे पर मुस्करान है। क्या शहर की यातायात व्यवस्था ठीक हो गई है। मेरी जनता खुश होगी,  तब भी मै अपने स्थापना दिवस के जश्न को सार्थक मानूगां । मेरी उम्र बढ़ती जा रही है , शहर से आपकी पहचान है , मेरे साथ न्याय कीजिये और राजा  रजबड़ो के समय के इतिहास के साक्ष्यों को बचाने में मदद किजिए ..नही तो भावी पीढ़ी मुझे कैसे पहचानेंगी …..? मुझे तो इस बात का भी दुख है कि मेरे अपने शहर की पहचान एकता और भाईचारे के लिए भी थी , लेकिन अब राजनेतिक गुटबाजी और खरीद फरोख्त की राजनीति ने शहर को भटका दिया है । अब मनभेद और मतभेद ने मेरे विकास को कमजोर किया है । राजनीति में सिर्फ अपनी अपनी पहचान बताने के लिये अपने हाथों से अपनी पीठ ही थपथपाई जा रही है । अब पूंजी ही सम्मान और पहचान है , शहर के सम्मान को ताक पर रख कर धज्जियां उड़ाई जा रही है ।
आज बस इतना ही…  अगले स्थापना दिवस पर फिर मिलूंगा , मुझे उम्मीद है मेरी पीड़ा समझी जायेगी और अपने शहर को याद करते हुए मेरे साक्ष्य बचाये जायेंगे, मुझे संभाग का दर्जा मिल जाएगा ,  एकता के साथ नई इबारत लिखी जाएगी ……! 
इन्ही शुभकामनाओ के साथ
            – आपका अपना शहर रतलाम 

By V meena

error: Content is protected !!