
रतलाम, IV NEWS आचार्य श्री विजय कुलबोधि सुरीश्वरजी म.सा. ने सैलाना वालों की हवेली, मोहन टॉकीज में प्रवचन देते हुए कहा कि जिसको प्रभु के वचन प्रिय नहीं है, उसको प्रभु ही प्रिय नहीं है। आंख में हमेशा संयम होना चाहिए और कान का हमेशा सदुपयोग करना चाहिए।
श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में आयोजित चातुर्मास प्रवचन के दौरान आचार्य श्री ने सतयुग और कलयुग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कलयुग में कितने भी माइनस हो लेकिन एक प्लस के कारण मैं नमस्कार करता हूं, क्योंकि मुझे प्रभु मिले है। जीवन में कभी-कभी दुख भी सुख में बदल जाता है। जहर भी अमृत बन जाता है। ऐसे ही मुझे भगवान मिल गए इसलिए कलयुग भी सतयुग है।

आचार्य श्री ने प्रभु के साथ कनेक्शन और रिलेशन के बारे में कहा कि जैसे तेल में पानी छट जाता है और दूध में पानी मिल जाता है, ठीक उसी तरह से हमारा संपर्क भगवान से दूध और पानी की तरह होना चाहिए। जैसे गौतम का महावीर से, हनुमान का राम से और अर्जुन का कृष्ण के साथ रिलेशन था। उन्होंने कहा कि प्रभु के पास जाने के तीन कारण आपत्ति, अशांति और असंतोष है। मुसीबत आती है तो व्यक्ति भगवान को याद करता है और मुसीबत टलते ही भूल जाता है। ठीक इसी प्रकार अशांति होने पर व्यक्ति प्रभु के पास जाता है। जिसके पास मन की शांति नहीं वह रोडपति है और जिसके पास मन की शांति वह करोड़पति है। ठीक इसी प्रकार असंतोष में भी व्यक्ति प्रभु को याद करता है। सब कुछ होने के बाद भी मन में हमेशा और अधिक का असंतोष पनपता है। जीवन में क्रोध से बचने की संभावना है लेकिन लोभ से बचने की नहीं। प्रवचन के दौरान बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।