रतलाम कथाकार सआदत हसन मंटो हमारी साझा विरासत के स्तंभ रहे। उन्होंने समय से आगे जाकर अपनी कहानियां लिखीं । उनकी कहानियों में विभाजन का दर्द भी महसूस होता है और उस वक़्त की सच्चाई भी । उनकी कहानियों में मनुष्यता की त्रासदियों का चित्रण है। आज हम सामाजिक अलगाव और वैमनस्य के जिस दौर से गुज़र रहे हैं , उसमें मंटो की कहानियां बार-बार पढ़ी जानी चाहिए और उन पर चर्चा भी होना चाहिए ।
उक्त विचार जनवादी लेखक संघ रतलाम द्वारा आयोजित कथा गोष्ठी में वरिष्ठ अनुवादक एवं कथाकार प्रो. रतन चौहान ने व्यक्त किए । भगतसिंह पुस्तकालय पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मंटो को पढ़ना बहुत आसान है लेकिन मंटो को समझना बहुत मुश्किल । वे अपनी छोटी सी कहानी में विभाजन के कई दर्द सामने लाते हैं और मनुष्यता पर सवाल खड़े करते हैं । आयोजन में कवि यूसुफ जावेदी ने मंटो की कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ का पाठ किया । उन्होंने कहा कि यह कहानी विभाजन के बाद के हालात को बयां करती है और यह संदेश देती है कि ज़मीनों को बांटना इंसानियत के विरुद्ध है।‌ विचार गोष्ठी में वरिष्ठ शायर सिद्दीक़ रतलामी ने कहा कि मंटो ने सिर्फ़ कहानियां लिखी ही नहीं बल्कि अपने आंखों से देखा हुआ सच भी लिखा । देश का विभाजन सिर्फ़ ज़मीन पर खींची हुई एक लकीर नहीं होता इससे कई सपने बिखरते हैं । कई लोगों के दिल टूटते हैं । इसी को मंटो ने अपनी कहानियों में रेखांकित किया। जनवादी लेखक संघ अध्यक्ष रणजीत सिंह राठौर ने कहा कि मंटो की हर कहानी में आम आदमी के साथ हुई यंत्रणाएं मुखर हुई हैं। उनको पढ़कर भीतर तक हलचल होती है।
संचालन करते हुए आशीष दशोत्तर ने कहा कि मंटो अपने समय से पचहत्तर साल बाद के हालात को बयां करते थे। उनकी कहानियों में ओ हेनरी जैसे आश्चर्य चकित करने वाले अंत दिखाई देते हैं। वे अधिक तालीमयाफ्ता नहीं थे मगर उनका ज्ञान अद्भुत था। समकालीन रचनाकारों में भी वे सबसे अलग ही थे। बयालीस साल की अल्पायु में उन्होंने साहित्य को समृद्ध रचनाएं दीं।
चर्चा में कीर्ति शर्मा, सुभाष यादव, मांगीलाल नगावत,अकरम शेरानी, जितेंद्र सिंह पथिक, एम. के. व्यास, एस.के . मिश्रा, सुभाष यादव, सत्य नारायण सोढ़ा, कला डामोर सहित सुधिजनों ने हिस्सा लिया। अंत में श्री राठौर ने आभार व्यक्त किया।

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